Friday, September 11, 2009

Monday, August 31, 2009

प्रेम का न दान दो

प्रेम को न दान दो, न दो दया,
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है।
प्रेम है कि ज्योति-स्नेह एक है,
प्रेम है कि प्राण-देह एक है,
प्रेम है कि विश्व गेह एक है,
प्रेमहीन गति, प्रगति विरुद्ध है।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥
प्रेम है इसीलिए दलित दनुज,
प्रेम है इसीलिए विजित दनुज,
प्रेम है इसीलिए अजित मनुज,
प्रेम के बिना विकास वृद्ध है।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥
नित्य व्रत करे नित्य तप करे,
नित्य वेद-पाठ नित्य जप करे,
नित्य गंग-धार में तिरे-तरे,
प्रेम जो न तो मनुज अशुद्ध है।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥

एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !

एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के ! साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !
बाँसुरी से बिछुड़ जो गया स्वर उसेभर लिया कंठ में शून्य आकाश ने,
डाल विधवा हुई जोकि पतझर मेंमाँग उसकी भरी मुग्ध मधुमास ने,
हो गया कूल नाराज जिस नाव सेपा गई प्यार वह एक मझधार
काबुझ गया जो दीया भोर में दीन-साबन गया रात सम्राट अंधियार का,
जो सुबह रंक था, शाम राजा हुआजो लुटा आज कल फिर बसा भी वही,
एक मैं ही कि जिसके चरण से धरारोज तिल-तिल धसकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर !
प्यार इतना किया जिंदगी में कि जड़-मौन तक मरघटों का मुखर कर दिया,
रूप-सौंदर्य इतना लुटाया कि हरभिक्षु के हाथ पर चंद्रमा धर दिया,
भक्ति-अनुरक्ति ऐसी मिली, सृष्टि की-शक्ल हर एक मेरी तरह हो गई,
जिस जगह आँख मूँदी निशा आ गई,जिस जगह आँख खोली सुबह हो गई,
किंतु इस राग-अनुराग की राह परवह न जाने रतन कौन-सा खो गया?
खोजती-सी जिसे दूर मुझसे स्वयंआयु मेरी खिसकती रही उम्र-भर- !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !
वेश भाए न जाने तुझे कौन-सा?इसलिए रोज कपड़े बदलता रहा,
किस जगह कब कहाँ हाथ तू थाम लेइसलिए रोज गिरता संभलता रहा,
कौन-सी मोह ले तान तेरा हृदयइसलिए गीत गाया सभी राग का,
छेड़ दी रागिनी आँसुओ की कभीशंख फूँका कभी क्राँति का आग का,
किस तरह खेल क्या खेलता तू मिलेखेल खेले इसी से सभी विश्व
केकब न जाने करे याद तू इसलिए याद कोई ‍कसकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर!
रोज ही रात आई गई, रोज हीआँख झपकी मगर नींद आई नहींरोज ही हर सुबह,
रोज ही हर कलीखिल गई तो मगर मुस्कुराई नहीं,
नित्य ही रास ब्रज में रचा चाँद ने पर न बाजी बाँसुरिया कभी श्याम की
इस तरह उर अयोध्या बसाई गईयाद भूली न लेकिन किसी राम
कीहर जगह जिंदगी में लगी कुछ कमीहर हँसी आँसुओं में नहाई
मिलीहर समय, हर घड़ी, भूमि से स्वर्ग तकआग कोई दहकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !सांस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !!
खोजता ही फिरा पर अभी तक मुझे मिल सका कुछ न तेरा ठिकाना कहीं,
ज्ञान से बात की तो कहा बुद्धि ने -'सत्य है वह मगर आजमाना नहीं',
धमर् के पास पहुँचा पता यह चलामंदिरों-मस्जिदों में अभी बंद है,
जोगियों ने जताया है कि जप-योग है,भोगियों से सुना भोग-आनंद
हैकिंतु पूछा गया नाम जब प्रेम से धूल से वह लिपट फूटकर रो पड़ा,
बस तभी से व्यथा देख संसार कीआँख मेरी छलकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !!

आदमी को प्यार दो...

सूनी-सूनी ज़िंदगी की राह है,भटकी-भटकी हर नज़र-निगाह है,
राह को सँवार दो,निगाह को निखार दो,
आदमी हो तुम कि उठा आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो।
तुम हो एक फूल कल जो धूल बनके जाएगा,
आज है हवा में कल ज़मीन पर ही आएगा,
चलते व़क्त बाग़ बहुत रोएगा-रुलाएगा,
ख़ाक के सिवा मगर न कुछ भी हाथ आएगा,
ज़िंदगी की ख़ाक लिए हाथ में,
बुझते-बुझते सपने लिए साथ में,
रुक रहा हो जो उसे बयार दो,
चल रहा हो उसका पथ बुहार दो।
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो, दुलार दो।
ज़िंदगी यह क्या है- बस सुबह का एक नाम है,पीछे जिसके रात है और आगे जिसके शाम है,
एक ओर छाँह सघन, एक ओर घाम है,जलना-बुझना, बुझना-जलना सिर्फ़ जिसका काम है,
न कोई रोक-थाम है,ख़ौफनाक-ग़ारो-बियाबान में,मरघटों के मुरदा सुनसान में,
बुझ रहा हो जो उसे अंगार दो,जल रहा हो जो उसे उभार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
ज़िंदगी की आँखों पर मौत का ख़ुमार है,और प्राण को किसी पिया का इंतज़ार है,
मन की मनचली कली तो चाहती बहार है,किंतु तन की डाली को पतझर से प्यार है,
क़रार है,पतझर के पीले-पीले वेश में,आँधियों के काले-काले देश में,
खिल रहा हो जो उसे सिंगार दो,झर रहा हो जो उसे बहार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
प्राण एक गायक है, दर्द एक तराना है,जन्म एक तारा है जो मौत को बजाता है,
स्वर ही रे! जीवन है, साँस तो बहाना है,प्यार की एक गीत है जो बार-बार गाना है,
सबको दुहराना है,साँस के सिसक रहे सितार परआँसुओं के गीले-गीले तार पर,
चुप हो जो उसे ज़रा पुकार दो,गा रहा हो जो उसे मल्हार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
एक चाँद के बग़ैर सारी रात स्याह है,एक फूल के बिना चमन सभी तबाह है,
ज़िंदगी तो ख़ुद ही एक आह है कराह है,प्यार भी न जो मिले तो जीना फिर गुनाह है,
धूल के पवित्र नेत्र-नीर से,आदमी के दर्द, दाह, पीर से, जो घृणा करे उसे बिसार दो,
प्यार करे उस पै दिल निसार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो॥

प्यार की कहानी चाहिए

NDआदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिएऔर

कहने के लिए कहानी प्यार कीस्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए।

जो भी कुछ लुटा रहे हो तुम यहाँवो ही बस तुम्हारे साथ जाएगा,

जो छुपाके रखा है तिजोरी मेंवो तो धन न कोई काम आएगा,

सोने का ये रंग छूट जाना हैहर किसी का संग छूट जाना

हैआखिरी सफर के इंतजाम के लिएजेब भी कफन में इक लगानी चाहिए।

आदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी

चाहिएरागिनी है एक प्यार कीजिंदगी कि जिसका नाम

हैगाके गर कटे तो है सुबहरोके गर कटे तो शाम है

शब्द और ज्ञान व्यर्थ हैपूजा-पाठ ध्यान व्यर्थ

हैआँसुओं को गीतों में बदलने के लिए, लौ किसी यार से लगानी

चाहिएआदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी

चाहिएजो दु:खों में मुस्कुरा दियावो तो इक गुलाब बन

के हक में जो मिटाप्यार की किताब बन गया,

आग और अँगारा भूल जा तेग और दुधारा भूल

जादर्द को मशाल में बदलने के लिएअपनी सब जवानी खुद जलानी चाहिए।

आदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी

चाहिएदर्द गर किसी का तेरे पास हैवो खुदा तेरे बहुत करीब

हैप्यार का जो रस नहीं है आँखों मेंकैसा हो

अमीर तू गरीब हैखाता और बही तो रे बहाना हैचैक

और सही तो रे बहाना हैसच्ची साख मंडी में कमाने के लिए दिल की कोई हुंडी भी भुनानी चाहिए।

खलील जिब्रान


खलील जिब्रान
- डॉ। रश्मिकांत व्यासवे अपने विचार जो उच्च कोटि के सुभाषित या कहावत रूप में होते थे, उन्हें कागज के टुकड़ों, थिएटर के कार्यक्रम के कागजों, सिगरेट की डिब्बियों के गत्तों तथा फटे हुए लिफाफों पर लिखकर रख देते थे। उनकी सेक्रेटरी श्रीमती बारबरा यंग को उन्हें इकट्ठी कर प्रकाशित करवाने का श्रेय जाता है। उन्हें हर बात या कुछ कहने के पूर्व एक या दो वाक्य सूत्र रूप में सूक्ति कहने की आदत थी।संसार के श्रेष्ठ चिंतक महाकवि के रूप में विश्व के हर कोने में ख्याति प्राप्त करने वाले, देश-विदेश भ्रमण करने वाले खलील जिब्रान अरबी, अंगरेजी फारसी के ज्ञाता, दार्शनिक और चित्रकार भी थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होने से जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। खलील जिब्रान 6 जनवरी 1883 को लेबनान के 'बथरी' नगर में एक संपन्ना परिवार में पैदा हुए। 12 वर्ष की आयु में ही माता-पिता के साथ बेल्जियम, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में भ्रमण करते हुए 1912 मेंअमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थायी रूप से रहने लगे थे। उनमें अद्भुत कल्पना शक्ति थी। वे अपने विचारों के कारण कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के समकक्ष ही स्थापित होते थे। उनकी रचनाएं 22 से अधिक भाषाओं में देश-विदेश में तथा हिन्दी, गुजराती, मराठी, उर्दू में अनुवादित हो चुकी हैं। इनमें उर्दू तथा मराठी में सबसे अधिक अनुवाद प्राप्त होते हैं। उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी कई देशों में लगाई गई, जिसकी सभी ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। वे ईसा के अनुयायी होकर भी पादरियों और अंधविश्वास के कट्टर विरोधी रहे। देश से निष्कासन के बाद भी अपनी देशभक्ति के कारण अपने देश हेतु सतत लिखते रहे। 48 वर्ष की आयु में कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होकर 10 अप्रैल 1931 को उनका न्यूयॉर्क में ही देहांत हो गया। उनके निधन के बाद हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों को आते रहे। बाद में उन्हें अपनी जन्मभूमि के गिरजाघर में दफनाया गया। वे अपने विचार जो उच्च कोटि के सुभाषित या कहावत रूप में होते थे, उन्हें कागज के टुकड़ों, थिएटर के कार्यक्रम के कागजों, सिगरेट की डिब्बियों के गत्तों तथा फटे हुए लिफाफों पर लिखकर रख देते थे। उनकी सेक्रेटरी श्रीमती बारबरा यंग को उन्हें इकट्ठी कर प्रकाशित करवाने का श्रेय जाता है। उन्हें हर बात या कुछ कहने के पूर्व एक या दो वाक्य सूत्र रूप में सूक्ति कहने की आदत थी।

वे कहते थे जिन विचारों को मैंने सूक्तियों में बंद किया है, मुझे अपने कार्यों से उनको स्वतंत्र करना है। 1926 में उनकी पुस्तक जिसे वे कहावतों की पुस्तिका कहते थे, प्रकाशित हुई थी। इन कहावतों में गहराई, विशालता और समयहीनता जैसी बातों पर गंभीर चिंतन मौजूद है। उनकी कुछ श्रेष्ठतम सूक्तियां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं- * सत्य को जानना चाहिए पर उसको कहना कभी-कभी चाहिए। * दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है। * कुछ सुखों की इच्छा ही मेरे दुःखों का अंश है। * यदि तुम अपने अंदर कुछ लिखने की प्रेरणा का अनुभव करो तो तुम्हारे भीतर ये बातें होनी चाहिए- 1. ज्ञान कला का जादू, 2. शब्दों के संगीत का ज्ञान और 3. श्रोताओं को मोह लेने का जादू। * यदि तुम्हारे हाथ रुपए से भरे हुए हैं तो फिर वे परमात्मा की वंदना के लिए कैसे उठ सकते हैं। * बहुत-सी स्त्रियाँ पुरुषों के मन को मोह लेती हैं। परंतु बिरली ही स्त्रियाँ हैं जो अपने वश में रख सकती हैं। * जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते। * मित्रता सदा एक मधुर उत्तरदायित्व है, न कि स्वार्थपूर्ति का अवसर। * मंदिर के द्वार पर हम सभी भिखारी ही हैं। * यदि अतिथि नहीं होते तो सब घर कब्र बन जाते। * यदि तुम्हारे हृदय में ईर्ष्या, घृणा का ज्वालामुखी धधक रहा है, तो तुम अपने हाथों में फूलों के खिलने की आशा कैसे कर सकते हो? * यथार्थ में अच्छा वही है जो उन सब लोगों से मिलकर रहता है जो बुरे समझे जाते हैं। * इससे बड़ा और क्या अपराध हो सकता है कि दूसरों के अपराधों को जानते रहें। * यथार्थ महापुरुष वह आदमी है जो न दूसरे को अपने अधीन रखता है और न स्वयं दूसरों के अधीन होता है। * अतिशयोक्ति एक ऐसी यथार्थता है जो अपने आपे से बाहर हो गई है। * दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो। * संसार में केवल दो तत्व हैं- एक सौंदर्य और दूसरा सत्य। सौंदर्य प्रेम करने वालों के हृदय में है और सत्य किसान की भुजाओं में। * इच्छा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत। * निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी। * यदि तुम जाति, देश और व्यक्तिगत पक्षपातों से जरा ऊँचे उठ जाओ तो निःसंदेह तुम देवता के समान बन जाओगे।

कामसूत्र और योगासन

आमतौर पर यह धारणा प्रचलित है कि संभोग के अनेक आसन होते हैं। 'आसन' कहने से हमेशा योग के आसन ही माने जाते रहे हैं। जबकि संभोग के सभी आसनों का योग के आसनों से कोई संबंध नहीं। लेकिन यह भी सच है योग के आसनों के अभ्यास से संभोग के आसनों को करने में सहजता पाई जा सकती है।योग के आसन : योग के आसनों को हम पाँच भागों में बाँट सकते हैं:-(1). पहले प्रकार के वे आसन जो पशु-पक्षियों के उठने-बैठने और चलने-फिरने के ढंग के आधार पर बनाए गए हैं जैसे- वृश्चिक, भुंग, मयूर, शलभ, मत्स्य, सिंह, बक, कुक्कुट, मकर, हंस, काक आदि।(2). दूसरी तरह के आसन जो विशेष वस्तुओं के अंतर्गत आते हैं जैसे- हल, धनुष, चक्र, वज्र, शिला, नौका आदि।(3). तीसरी तरह के आसन वनस्पतियों और वृक्षों पर आधारित हैं जैसे- वृक्षासन, पद्मासन, लतासन, ताड़ासन आदि।(4). चौथी तरह के आसन विशेष अंगों को पुष्ट करने वाले माने जाते हैं-जैसे शीर्षासन, एकपादग्रीवासन, हस्तपादासन, सर्वांगासन आदि।(5). पाँचवीं तरह के वे आसन हैं जो किसी योगी के नाम पर आधारित हैं-जैसे महावीरासन, ध्रुवासन, मत्स्येंद्रासन, अर्धमत्स्येंद्रासन आदि।संभोग के आसनों का नाम : आचार्य बाभ्रव्य ने कुल सात आसन बताए हैं- 1. उत्फुल्लक, 2. विजृम्भितक, 3. इंद्राणिक, 4. संपुटक, 5. पीड़ितक, 6. वेष्टितक, 7. बाड़वक।आचार्य सुवर्णनाभ ने दस आसन बताए हैं: 1.भुग्नक, 2.जृम्भितक, 3.उत्पी‍ड़ितक, 4.अर्धपीड़ितक, 5.वेणुदारितक, 6.शूलाचितक, 7.कार्कटक, 8.पीड़ितक, 9.पद्मासन और 10. परावृत्तक।
NDआचार्य वात्स्यायन के आसन :विचित्र आसन : 1।स्थिररत, 2.अवलम्बितक, 3.धेनुक, 4.संघाटक, 5.गोयूथिक, 6.शूलाचितक, 7.जृम्भितक और 8.वेष्टितक।अन्य आसन : 1.उत्फुल्लक, 2.विजृम्भितक, 3.इंद्राणिक, 4. संपुटक, 5. पीड़ितक, 6.बाड़वक 7. भुग्नक 8.उत्पी‍ड़ितक, 9. अर्धपीड़ितक, 10.वेणुदारितक, 11. कार्कटक 12. परावृत्तक आसन 13. द्वितल और 14. व्यायत। कुल 22 आसन होते हैं। यहाँ आसनों के नाम लिखने का आशय यह कि योग के आसनों और संभोग के आसनों के संबंध में भ्रम की निष्पत्ति हो। संभोग के उक्त आसनों में पारंगत होने के लिए योगासन आपकी मदद कर सकते हैं। इसके लिए आपको शुरुआत करना चाहिए 'अंग संचालन' से अर्थात सूक्ष्म व्यायाम से। इसके बाद निम्नलिखित आसन करें
(1) पद्‍मासन : इस आसन से कूल्हों के जाइंट, माँसमेशियाँ, पेट, मूत्राशय और घुटनों में खिंचाव होता है जिससे इनमें मजबूती आती है और यह सेहतमंद बने रहते हैं। इस मजबूती के कारण उत्तेजना का संचार होता है। उत्तेजना के संचार से आनंद की दीर्घता बढ़ती है।(2) भुजंगासन : भुजंगासन आपकी छाती को चौड़ा और मजबूत बनाता है। मेरुदंड और पीठ दर्द संबंधी समस्याओं को दूर करने में फायदेमंद है। यह स्वप्नदोष को दूर करने में भी लाभदायक है। इस आसन के लगातार अभ्यास से वीर्य की दुर्बलता समाप्त होती है। (3) सर्वांगासन : यह आपके कंधे और गर्दन के हिस्से को मजबूत बनाता है। यह नपुंसकता, निराशा, यौन शक्ति और यौन अंगों के विभिन्न अन्य दोष की कमी को भी दूर करता है।(4) हलासन : यौन ऊर्जा को बढ़ाने के लिए इस आसन का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पुरुषों और महिलाओं की यौन ग्रंथियों को मजबूत और सक्रिय बनाता है।(5) धनुरासन : यह कामेच्छा जाग्रत करने और संभोग क्रिया की अवधि बढ़ाने में सहायक है। पुरुषों के ‍वीर्य के पतलेपन को दूर करता है। लिंग और योनि को शक्ति प्रदान करता है।(6) पश्चिमोत्तनासन : सेक्स से जुड़ी समस्त समस्या को दूर करने में सहायक है। जैसे कि स्वप्नदोष, नपुंसकता और महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़े दोषों को दूर करता है।(7) भद्रासन : भद्रासन के नियमित अभ्यास से रति सुख में धैर्य और एकाग्रता की शक्ति बढ़ती है। यह आसन पुरुषों और महिलाओं के स्नायु तंत्र और रक्तवह-तन्त्र को मजबूत करता है।(8) मुद्रासन : मुद्रासन तनाव को दूर करता है। महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़े हए विकारों को दूर करने के अलावा यह आसन रक्तस्रावरोधक भी है। मूत्राशय से जुड़ी विसंगतियों को भी दूर करता है।(9) मयुरासन : पुरुषों में वीर्य और शुक्राणुओं में वृद्धि होती है। महिलाओं के मासिक धर्म के विकारों को सही करता है। लगातार एक माह तक यह आसन करने के बाद आप पूर्ण संभोग सुख की प्राप्ति कर सकते हो।(10) कटी चक्रासन : यह कमर, पेट, कूल्हे, मेरुदंड तथा जंघाओं को सुधारता है। इससे गर्दन और कमर में लाभ मिलता है। यह आसन गर्दन को सुडौल बनाकर कमर की चर्बी घटाता है। शारीरिक थकावट तथा मानसिक तनाव दूर करता

Friday, August 21, 2009

विचार लो कि मत्र्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।


रचनाकार: मैथिलीशरण गुप्त : विचार लो कि मत्र्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸ मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।
विचार लो कि मत्र्य हो न मृत्यु से डरो कभी¸
मरो परन्तु यों मरो कि याद जो करे सभी।
हुई न यों सु–मृत्यु तो वृथा मरे¸
वृथा जिये¸नहीं वहीं कि जो जिया न आपके लिए।
यही पशु–प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
उसी उदार की कथा सरस्वती बखानवी¸
उसी उदार से धरा कृतार्थ भाव मानती।
उसी उदार की सदा सजीव कीर्ति कूजती;
तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती।
अखण्ड आत्मभाव जो असीम विश्व में भरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिये मरे।।
सहानुभूति चाहिए¸ महाविभूति है वही;
वशीकृता सदैव है बनी हुई स्वयं मही।
विरूद्धवाद बुद्ध का दया–प्रवाह में बहा¸
विनीत लोक वर्ग क्या न सामने झुका रहे?
अहा! वही उदार है परोपकार जो करे¸
वहीं मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
अनंत अंतरिक्ष में अनंत देव हैं खड़े¸
समक्ष ही स्वबाहु जो बढ़ा रहे बड़े–बड़े।
परस्परावलम्ब से उठो तथा बढ़ो सभी¸
अभी अमत्र्य–अंक में अपंक हो चढ़ो सभी।
रहो न यों कि एक से न काम और का सरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
"मनुष्य मात्र बन्धु है" यही बड़ा विवेक है¸
पुराणपुरूष स्वयंभू पिता प्रसिद्ध एक है।
फलानुसार कर्म के अवश्य बाह्य भेद है¸
परंतु अंतरैक्य में प्रमाणभूत वेद हैं।
अनर्थ है कि बंधु हो न बंधु की व्यथा हरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
चलो अभीष्ट मार्ग में सहर्ष खेलते हुए¸
विपत्ति विप्र जो पड़ें उन्हें ढकेलते हुए।
घटे न हेल मेल हाँ¸ बढ़े न भिन्नता कभी¸
अतर्क एक पंथ के सतर्क पंथ हों सभी।
तभी समर्थ भाव है कि तारता हुआ तरे¸
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
रहो ना भूल के कभी मदघंध तुछ वित् में
सनाथ जान आपको करो ना गर्व चित में अनाथ कोंन है
यहं त्रिलोक नाथ साथ है दयालु दिन बंधू के बड़े विशाल हाथ हैं
अतएव भाग्य हीन है अद्धेर भावे जो भरे वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।।
रचनाकार: मैथिलीशरण गुप्त

याचना नहीं अब रण होगा जीवन जय या कि मरण होगा

याचना नहीं अब रण होगा जीवन जय या कि मरण होगा
वर्षो तक वन में घूम घूम बाधा विघ्नों को चूम चूम
सह धुप ग़म पानी पत्थरपांडव आये कुछ और निखार
सौभाग्य ना सब दिन सोता हे
देखे आगे क्या होता हे
मैत्री की राह दिखाने को सब को सुमार्ग पे लाने को
दुर्योधन को समझाने को भीषण विध्वंस बचाने को
भगवान हस्तिनापुर आये पांडव का संदेसा लाये
दो न्याय अगर तो आधा दो
पर इसमें भी यदि बाधा हो तो दे
दो केवल पाच ग्राम
रखो अपनी धरती तमाम
हम वही ख़ुशी से खायेंगे
परिजन पे असी ना उठाएंगे (असी = हथियार)
दुर्योधन वोः भी दे ना सका आशीष समाज की ले ना सका
उल्टे हरी को बांधने चला जो था असाध्य साधने चला
जब नाश मनुज पर छाता हे पहले विवेक मर जाता हे
हरी ने भीषण हुंकार किया अपना स्वरुप विस्तार किया
डगमग डगमग दिग्गज डोले भगवान कुपित होकर बोले
जंजीर बाधा अब साध मुझे हां हां दुर्योधन बाँध मुझे
यह देख गगन मुझमे लय है यह देख पवन मुझमे लय है
मुझमे विलीन झंकार सकल मुझ मे लय है संसार सकल
अमरत्व फूलता है मुह मे संहार झूलता है मुझ मे
उदयाचल मेरे दीप्त भालभू -मंडल वक्ष -स्थल विशालभुज
परिधि बन्ध को घेरे हैं मैनाक मेरु पग मेरे हैं
दीप्ते जो गृह नक्षत्र निकर सब हैं मेरे मुख के अन्दर दृग
हो तो दृश्य अखंड देख मुझ मे सारा ब्रह्माण्ड देख
चर-अचर जीव , जग क्षर अक्षरनश्वर मनुष्य
सुरजाति अमरसत कोटि सूर्य , सत कोटि चन्द्रसत कोटि सरित
सर सिन्धु मंद्र सत कोटि ब्रह्मा विष्णु महेशसत कोटि
जल्पति जिष्णु धनेशसत कोटि रुद्र ,
सत कोटि कालसत कोटि दंड धर लोकपाल जंजीर बाधा कर साध इन्हें
हाँ हाँ दुर्योधन बाँध इन्हें भूतल अटल पातळ देखगत और अनागत काल देख
यह देख जगत का आदि सृजन यह देख महाभारत का रणमृतकों से पति हुई भू है
पहचान कहाँ इसमें तू है?अम्बर का कुंतल जाल देखपड़ के निचे पातळ देख
मुट्ठी मैं तीनो काल देख मेरा स्वरुप विकराल देख सब जन्म मुझी से पाते हैं
फिर लौट मुझी मैं आते हैं जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन
साँसों से पाता जन्म पवन पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर हंसने लगती है सृष्टि उधर
मैं जभी मूंदता हूँ लोचन छा जाता चारो और मरण
बाँधने मुझे तो आया है जंजीर बड़ी क्या लाया है? यदि मुझे बांधना चाहे मन्न
पहले तू बाँध अनंत गगन सुने को साध ना सकता है वो मुझे बाँध कब सकता है?
हित वचन नहीं तुने माना मैत्री का मूल्य ना पहचाना तो ले अब मैं भी जाता हूँ
अंतिम संकल्प सुनाता हूँ याचना नहीं अब रण होगा
जीवन जय या की मरण होगा टकरायेंगे नक्षत्र निकर बरसेगी भू पर वह्नी प्रखर
फन शेषनाग का डोलेगा विकराल काल मुंह खोलेगा
दुर्योधन रण ऐसा होगा फिर कभी नहीं जैसा होगा
भाई पर भाई टूटेंगे विष -बाण बूँद -से छुटेंगे
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे वयास शृगाल सुख लूटेंगे
आखिर तू भूशायी होगा हिंसा का पर्दायी होगा
थी सभा सन्न , सब लोग डरे चुप थे या थे बेहोश पड़े'
केवल दो नर ना अघाते थे ध्रिश्त्राष्ट्र -विदुर सुख पाते थे
कर जोड़ खरे प्रमुदित निर्भय दोनों पुकारते थे जय -जय ..
रामधारीसिंह दिनकर

लता ने गाया हनुमान चालीसा

सूखा, मंदी और स्वाइन फ्लू से जूझ रहे देश में खुशहाली लाने के लिए स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने पहली बार 'हनुमान चालीसा' को अपनी आवाज दी है। उन्होंने इसे देश को समर्पित किया है।लता ने एक बयान में कहा, "हम बेहद कठिन समय से गुजर रहे हैं और हनुमान जी संकटमोचन के नाम से जाने जाते हैं। अपने 60 साल के करियर में मैंने उनकी प्रशंसा में गीत नहीं गाया लेकिन अब मैं हनुमान चालीसा को आवाज दे रही हूं। उनका आशीर्वाद लेने का यह सही समय है।"संगीत रिकार्डिग कंपनी 'टी-सीरीज' के लिए लता ने हनुमान चालीसा को आवाज दी है। बाजार में जल्द ही यह कैसेट उतारा जाएगा। वैसे इस महान गायिका ने अपने लंबे संगीत करियर में कई प्रसिद्ध भक्ति गीतों को आवाज दी है।

जसवंत बर्खास्त! आडवाणी क्यों नहीं?

बीजेपी ने जसवंत सिंह को पार्टी से निकाल दिया है। उन पर आरोप है कि उन्होंने एक किताब लिखी है जिसमें पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिनाह की तारीफ की है और उन्हें सरदार पटेल और जवाहर लाल नेहरू की तुलना में ज्याद ऊंचा दर्जा दिया है। जहां तक जसवंत सिंह की किताब का प्रश्न है उसे कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है, किताब में लिखी गई बहुत सी बातें ऐसी हैं, जिन्हें पढ़कर लगता है कि जसवंत सिंह बेचारे बहुत ही मामूली बौद्घिक स्तर के इंसान हैं। लगता है पढ़ाई-लिखाई उनकी मामूली ही है क्योंकि पांच साल तक रिसर्च करके उन्होंने जो किताब लिखी है, वह बहुत ही मामूली है। तथ्यों की तो बहुत सारी गलतियां हैं, और जो निष्कर्ष निकाले गए हैं वे बहुत ही ऊलजलूल है। ऐसा लगता है कि जसवंत सिंह भी इसी क्लास में पढ़ते थे जिसमें मुंगेरी लाल, तीसमार खां, शेख चिल्ली वगैरह ने नाम लिखा रखा था। बहरहाल उनकी किताब को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है। इस बात में कोई शक नहीं है कि जसवंत सिंह की जिन्ना वाले निष्कर्ष का मुकाम डस्टबिन है और रिलीज होने के साथ वह अपनी मंजिल हासिल कर चुका है लेकिन उनकी पार्टी में इस किताब ने एक तूफान खड़ा कर दिया है। शिमला में शुरू हुई बीजेपी की चिंतन बैठक में शुरू में ही जसवंत सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया। मामले को नागपुर मठाधीशों ने भी बहुत गंभीरता से लिया और राजनाथ सिंह को आदेश हो गया कि जसवंत सिंह को पार्टी से निकाल बाहर करो। राजनाथ सिंह वैसे तो पार्टी के अध्यक्ष हैं लेकिन उनकी छवि एक हुक्म के गुलाम की ही है और जसवंत सिंह बहुत ही बे-आबरू होकर हिंदुत्व वादी पार्टी से निकल चुके हैं। जसवंत सिंह का बीजेपी से निष्कासन पार्टी के आंतरिक जनतंत्र पर भी सवाल पैदा करता है अपराध के कारण उन्हें बीजेपी से बाहर किया गया। तो क्या पाकिस्तान के संस्थापक की तारीफ करने वालों को बीजेपी से निकाल दिया जाता है। जाहिर है यह सच नहीं है। अगर ऐसा होता तो लालकृष्ण आडवाणी कभी के बाहर कर दिए गए होते। जसवंत सिंह पर तो आरोप है कि उन्होंने अपनी किताब में जिनाह की तारीफ की है, आडवाणी तो उनकी कब्र पर गए थे और बाकायदा माथा टेक कर वहां खड़े होकर मुहम्मद अली जिनाह की शान में कसीदे पढ़े थे और पाकिस्तान के संस्थापक को बहुत ज्यादा सेकुलर इंसान बताकर आए थे। यह भी नहीं कहा जा सकता कि उन दिनों आरएसएस की ताकत इतनी कमजोर थी कि वह अपने मातहत काम करने वाली बीजेपी पर लगाम नहीं लगा सकता था। इस हालत में लगता है कि जसवंत के निकाले जाने में जिनाह प्रेम का योगदान उतना नहीं है, जितना माना जा रहा है। अगर ऐसा होता तो आडवाणी का भी वही हश्र होता जो जसवंत सिंह का हुआ। लगता है कि पेंच कहीं और है। कहीं ऐसा तो नहीं कि बीजेपी में आडवाणी गुट की ताकत की धमक ऐसी थी कि आरएसएस वालों की हिम्मत नहीं पड़ी कि उन्हें पार्टी से निकालने की कोशिश करें। डर यह था कि अगर आडवाणी को बाहर किया तो उनके गुट के लोग बाहर चले जाएंगे। जसवंत सिंह को दिल्ली की राजनीतिक गलियों में अटल बिहारी वाजपेयी के अखाड़े का पहलवान माना जाता है। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने जसवंत सिंह को महत्व भी खूब दिया था। मंत्रिमंडल में महत्वपूर्ण विभाग भी मिला था उन्हें जब कंधार जाकर आतंकवादियों को छोडऩे की बात आई तो वही भेजे गए थे। वे वाजपेयी गुट के भरोसेमंद माने जाते हैं। आजकल वाजपेयी गुट के नेता लोग परेशानी में हैं। कहीं ऐसा तो नही कि वाजपेयी की बीमारी के कारण उनके गुट के कमजोर पड़ जाने की वजह से आडवाणी के चेलों ने आरएसएस के कंधे पर बंदूक चला दी हो और राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई में आडवाणी को सबसे ऊंचा बनाने की कोशिश हो। जसवंत सिंह की किताब में नेहरू की निंदा की गई है। इसे संघी राजनीति की गिजा माना जाता है। लेकिन जसवंत बाबू ने साथ में सरदार पटेल को भी लपेट लिया, उनको भी जिनाह से छोटा करार दे दिया। यह बात बीजेपी की हिंदुत्ववादी राजनीति के खिलाफ जाती है। भगवा ब्रिगेड की पूरी कोशिश है कि सरदार पटेल को अपना नेता बनाकर पेश करें। ऐसा इसलिए कि आज़ादी की लड़ाई में आरएसएस और उसके मातहत संगठनों के किसी नेता ने हिस्सा नहीं लिया था। उनकी पूरी कोशिश रहती है कि ऐसे किसी भी आदमी को अपनी विचारधारा का बनाकर पेश कर दें जो नेहरू परिवार के मुखालिफ रहा हो। सरदार पटेल की यह छवि बनाने की नेहरू विरोधियों की हमेशा से कोशिश रही है। हालांकि यह बिलकुल गलत कोशिश है लेकिन संघी बिरादरी इसमें लगी हुई है। इसी तरह एक बार आरएसएस वालों ने कोशिश की थी कि सरदार भगत सिंह को अपना लिया जाय। साल-दो साल कोशिश भी चली लेकिन जब पता चला कि भगत सिंह तो कम्युनिस्ट पार्टी में थे तबसे यह कोशिश है कि सरदार पटेल को अपनाया जाय लिहाजा उनके खिलाफ आज कुछ भी कहना ठीक नहीं होगा। इस बीच खबर है कि उत्तर प्रदेश के बीजेपी नेता कलराज मिश्र ने जसवंत सिंह की बर्खास्तगी का विरोध किया है। उनका कहना है कि जसवंत सिंह ने जो भी कहा है वह तथ्यों पर आधारित है इसलिए उनको हटाने की बात करना ठीक नहीं है। अगर इस बात में जरा भी दम है तो इस बात में शक नहीं कि बीजेपी के दो टुकड़े होने वाले हैं।

फोर्ब्स की पावर लिस्ट में सोनिया, कोचर

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और आईसीआईसीआई बैंक की मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं प्रबंध निदेशक चंदा कोचर विश्व की 20 सबसे ताकतवर महिलाओं की सूची में शामिल हैं। फोर्ब्स पत्रिका ने 100 ताकतवर महिलाओं की सूची में दोनों को शीर्ष 20 में शामिल किया है। फोर्ब्स पत्रिका की इस सूची में चंदा कोचर 20वें पायदान पर, जबकि सोनिया गांधी 13वें स्थान पर हैं। जर्मनी की चासंलर एजेंला मार्केल सूची में शीर्ष स्थान पर हैं। फेडरल डिपोजिट इंश्योरेंस कारपोरेशन की चेयरपर्सन शाइला बेयर दूसरे और भारतीय मूल की पेप्सीको की मुख्य कार्यकारी अधिकारी इंदिरा नूयी तीसरे पायदान पर हैं।सोनिया गांधी और चंदा कोचर के अलावा बायोकान की किरण मजुमदार शा भी इस सूची में शामिल हैं। उन्हें 91वें पायदान पर रखा गया है। पिछले साल की सूची में कांग्रेस अध्यक्ष 21वें स्थान पर थी जबकि मजुमदार 99वें पायदान पर थी। नूयी ने इस बार भी सूची में तीसरा स्थान बरकरार रखा है।बहुजन समाजवादी पार्टी की नेता और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को इस बार सूची में कोई स्थान नहीं मिला जबकि पिछली बार वह 59वें पायदान पर थी।सोनिया के बारे में फोर्ब्स ने लिखा है कि 1990 के दशक में राजनीति में कदम रखने के बाद से अभी भी भी उनका राजनीति में वर्चस्व बरकरार है। पत्रिका ने कोचर के बारे में लिखा है कि इस साल मई में भारत के दूसरे बड़े बैंक के प्रमुख का कार्यभार संभालने के बाद उन्होंने बैंक के खुदरा कारोबार को नई मुकाम पर पहुंचा दिया है।

आडवाणी, मोदी, वरुण ने भाजपा को डुबोया

लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद भारतीय जनता पार्टी की साख इतनी ज्‍यादा कमजोर पड़ गई है, कि पांच साल बाद भी चुनाव में दोबारा पार्टी कामजबूत हो पाना मुश्किल दिखने लगा है। आंतरिक कलह से गुजर रही भाजपा के डूबने के जिम्‍मेदार कोई बाहरी व्‍यक्ति नहीं, बल्कि लाल कृष्‍ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी और भाजपा की युवा तस्‍वीर वरुण गांधी हैं। यह बात भाजपाइयों को भले ही कड़वी लग रही होगी, लेकिन यह ऐसा सच है, जो आप्‍टे रिपोर्ट में पेश किया गया है। असल में चुनाव में हार की मुख्‍य वजह ढूंढ़ने के लिए भाजपा नेता बाल आप्टे के नेतृत्‍व में एक कमेटी बनाई गई थी। शिमला में चल रहे भाजपा की चिंतन बैठक में रिपोर्ट की प्रतियां गुप-चुप तरीके से बांटी गईं। भाजपा को नागवार गुजरी रिपोर्ट भाजपा नेता अरुण जेटली ने मीडिया के सामने ऐसी किसी भी कमेटी के होने पर इंकार किया है। लेकिन यह बात पक्‍की है कि यह रिपोर्ट पार्टी को नागवार गुजर रही है। इस‍ीलिए इस पर कोई नतीजा निकालने से पहले ही इसका खुलासा हो गया। आप्‍टे रिपोर्ट कहती है कि भाजपा की हार की वजह आडवाणी इसलिए बनें, क्‍योंकि उन्‍होंने चुनाव के दौरान मनमोहन सिंह पर निजी हमले किए। कंधार मामला उछालना, युवाओं से न जुड़ पाना हार का कारण बना। वहीं मोदी को भावी प्रधानमंत्री बताना भी भाजपा को ले डूबा। मुसलमानों के खिलाफ वरुण गांधी का भड़काऊ भाषण भी बड़ा कारण है। इसके अलावा भाजपा अध्‍यक्ष राजनाथ सिंह, वरिष्‍ठ नेता अरुण जेटली और सुषमा स्‍वराज समेत कई अन्‍य नेताओं पर भी रिपोर्ट में निशाना साधा गया है

पटेल ने ही लगाई थी संघ पर पाबंदी

अपनी किताब में भारत-पाक विभाजन कि लिए सरदार पटेल को दोषी ठहराने के कारण भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से बेआबरू होकर निकाले गए जसवंत सिंह ने बीजेपी और संघ के नेताओं को याद दिलाया है कि वह सरदार पटेल ही थे, जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर सबसे पहले प्रतिबंध लगाया था। बीजेपी ने सरदार पटेल पर जसवंत की टिप्पणी को अनुशासन हीनता और मूल्यों के खिलाफ बताया था। जसवंत सिंह ने कहा कि "मुझे नहीं मालूम की बीजेपी किस आस्था की बात कर रही है, जबकि सरदार पटेल ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया। उन्होंने कहा कि मुझे मालूम नहीं कि मैंने मूल आस्था के किस अंश को छेड़ा है"।जसवंत सिंह ने बीजेपी को यह भी याद दिलाया कि जब आडवाणी ने जिन्ना को महान बताया था तह पार्टी ने उनके खिलाफ कोई प्रस्ताव पारित नहीं किया था, बल्कि पार्टी उनके साथ खड़ी थी। ऐसे में पार्टी उनके साथ भेदभव पूर्ण रवैय्या अपना रही है। खुद को आरएसएस से अलग बताते हुए जसवंत ने साफ कहा कि "मैं कभी आरएसएस से जुड़ा नहीं रहा न ही मेरे कभी इनके साथ संबंध ही रहे हैं"। नरेंद्र मोदी सराकर द्वारा उनकी किताब पर गुजरात में लगाए गए प्रतिबंध की आलोचना करते हुए जसवंत ने कहा कि यह किताब पर नहीं, बल्कि सोच पर प्रतिबंध है। सबको व्यक्तिगत रूप से और मिलकर इस बारे में सोचना चाहिए। जसवंत सिंह को उनकी किताब- 'जिन्ना: भारत, विभाजन, आजादी' में जिन्ना को विभाजन के दोष के लिए बरी करने और जवाहरलाल नेहरू के साथ सरदार वल्लभ भाई पटेल पर उंगली उठाने के लिए बुधवार को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से बर्खास्त कर दिया गया। आरएसएस ने जसवंत सिंह के विचारों को खारिज करते हुए उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई के लिए दबाव बनाया था।

एक वजह

Rehne de aasman...Zamin ki talash kar, sab kuch yahi hai...na kahin aur talash kar, har aarzoo puri ho to jine ka kya Maza, jine ke liye bas ek wajah ki talash kar...
ye sipahi nahi na hi imandari ka makool sila hai ye to bjp ka nahi ye jinna ka pila hai nahi karna tha garoor is par ye to dimag se hi hila hai kabhi inka nashe mein to kabhi raiswat le dikhaya character ka dhila hai kya karein kis pe rakhe yakin ye to 30 salon ka silsila hai ab band karo ye massage na do ki tu pak se bhi mila hai sudhar jane ki gunjaish hain sesh abhi varna na kashmir raha na oxy chin mila है