Monday, August 31, 2009

प्रेम का न दान दो

प्रेम को न दान दो, न दो दया,
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है।
प्रेम है कि ज्योति-स्नेह एक है,
प्रेम है कि प्राण-देह एक है,
प्रेम है कि विश्व गेह एक है,
प्रेमहीन गति, प्रगति विरुद्ध है।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥
प्रेम है इसीलिए दलित दनुज,
प्रेम है इसीलिए विजित दनुज,
प्रेम है इसीलिए अजित मनुज,
प्रेम के बिना विकास वृद्ध है।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥
नित्य व्रत करे नित्य तप करे,
नित्य वेद-पाठ नित्य जप करे,
नित्य गंग-धार में तिरे-तरे,
प्रेम जो न तो मनुज अशुद्ध है।
प्रेम तो सदैव ही समृद्ध है॥

एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !

एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के ! साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !
बाँसुरी से बिछुड़ जो गया स्वर उसेभर लिया कंठ में शून्य आकाश ने,
डाल विधवा हुई जोकि पतझर मेंमाँग उसकी भरी मुग्ध मधुमास ने,
हो गया कूल नाराज जिस नाव सेपा गई प्यार वह एक मझधार
काबुझ गया जो दीया भोर में दीन-साबन गया रात सम्राट अंधियार का,
जो सुबह रंक था, शाम राजा हुआजो लुटा आज कल फिर बसा भी वही,
एक मैं ही कि जिसके चरण से धरारोज तिल-तिल धसकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !साँस मेरी सिसकती रही उम्र भर !
प्यार इतना किया जिंदगी में कि जड़-मौन तक मरघटों का मुखर कर दिया,
रूप-सौंदर्य इतना लुटाया कि हरभिक्षु के हाथ पर चंद्रमा धर दिया,
भक्ति-अनुरक्ति ऐसी मिली, सृष्टि की-शक्ल हर एक मेरी तरह हो गई,
जिस जगह आँख मूँदी निशा आ गई,जिस जगह आँख खोली सुबह हो गई,
किंतु इस राग-अनुराग की राह परवह न जाने रतन कौन-सा खो गया?
खोजती-सी जिसे दूर मुझसे स्वयंआयु मेरी खिसकती रही उम्र-भर- !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !
वेश भाए न जाने तुझे कौन-सा?इसलिए रोज कपड़े बदलता रहा,
किस जगह कब कहाँ हाथ तू थाम लेइसलिए रोज गिरता संभलता रहा,
कौन-सी मोह ले तान तेरा हृदयइसलिए गीत गाया सभी राग का,
छेड़ दी रागिनी आँसुओ की कभीशंख फूँका कभी क्राँति का आग का,
किस तरह खेल क्या खेलता तू मिलेखेल खेले इसी से सभी विश्व
केकब न जाने करे याद तू इसलिए याद कोई ‍कसकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर!
रोज ही रात आई गई, रोज हीआँख झपकी मगर नींद आई नहींरोज ही हर सुबह,
रोज ही हर कलीखिल गई तो मगर मुस्कुराई नहीं,
नित्य ही रास ब्रज में रचा चाँद ने पर न बाजी बाँसुरिया कभी श्याम की
इस तरह उर अयोध्या बसाई गईयाद भूली न लेकिन किसी राम
कीहर जगह जिंदगी में लगी कुछ कमीहर हँसी आँसुओं में नहाई
मिलीहर समय, हर घड़ी, भूमि से स्वर्ग तकआग कोई दहकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !सांस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !!
खोजता ही फिरा पर अभी तक मुझे मिल सका कुछ न तेरा ठिकाना कहीं,
ज्ञान से बात की तो कहा बुद्धि ने -'सत्य है वह मगर आजमाना नहीं',
धमर् के पास पहुँचा पता यह चलामंदिरों-मस्जिदों में अभी बंद है,
जोगियों ने जताया है कि जप-योग है,भोगियों से सुना भोग-आनंद
हैकिंतु पूछा गया नाम जब प्रेम से धूल से वह लिपट फूटकर रो पड़ा,
बस तभी से व्यथा देख संसार कीआँख मेरी छलकती रही उम्र-भर !
एक तरे बिना प्राण ओ प्राण के !साँस मेरी सिसकती रही उम्र-भर !!

आदमी को प्यार दो...

सूनी-सूनी ज़िंदगी की राह है,भटकी-भटकी हर नज़र-निगाह है,
राह को सँवार दो,निगाह को निखार दो,
आदमी हो तुम कि उठा आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो।
तुम हो एक फूल कल जो धूल बनके जाएगा,
आज है हवा में कल ज़मीन पर ही आएगा,
चलते व़क्त बाग़ बहुत रोएगा-रुलाएगा,
ख़ाक के सिवा मगर न कुछ भी हाथ आएगा,
ज़िंदगी की ख़ाक लिए हाथ में,
बुझते-बुझते सपने लिए साथ में,
रुक रहा हो जो उसे बयार दो,
चल रहा हो उसका पथ बुहार दो।
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो, दुलार दो।
ज़िंदगी यह क्या है- बस सुबह का एक नाम है,पीछे जिसके रात है और आगे जिसके शाम है,
एक ओर छाँह सघन, एक ओर घाम है,जलना-बुझना, बुझना-जलना सिर्फ़ जिसका काम है,
न कोई रोक-थाम है,ख़ौफनाक-ग़ारो-बियाबान में,मरघटों के मुरदा सुनसान में,
बुझ रहा हो जो उसे अंगार दो,जल रहा हो जो उसे उभार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
ज़िंदगी की आँखों पर मौत का ख़ुमार है,और प्राण को किसी पिया का इंतज़ार है,
मन की मनचली कली तो चाहती बहार है,किंतु तन की डाली को पतझर से प्यार है,
क़रार है,पतझर के पीले-पीले वेश में,आँधियों के काले-काले देश में,
खिल रहा हो जो उसे सिंगार दो,झर रहा हो जो उसे बहार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
प्राण एक गायक है, दर्द एक तराना है,जन्म एक तारा है जो मौत को बजाता है,
स्वर ही रे! जीवन है, साँस तो बहाना है,प्यार की एक गीत है जो बार-बार गाना है,
सबको दुहराना है,साँस के सिसक रहे सितार परआँसुओं के गीले-गीले तार पर,
चुप हो जो उसे ज़रा पुकार दो,गा रहा हो जो उसे मल्हार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
एक चाँद के बग़ैर सारी रात स्याह है,एक फूल के बिना चमन सभी तबाह है,
ज़िंदगी तो ख़ुद ही एक आह है कराह है,प्यार भी न जो मिले तो जीना फिर गुनाह है,
धूल के पवित्र नेत्र-नीर से,आदमी के दर्द, दाह, पीर से, जो घृणा करे उसे बिसार दो,
प्यार करे उस पै दिल निसार दो,
आदमी हो तुम कि उठो आदमी को प्यार दो,दुलार दो।
रोते हुए आँसुओं की आरती उतार दो॥

प्यार की कहानी चाहिए

NDआदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी चाहिएऔर

कहने के लिए कहानी प्यार कीस्याही नहीं, आँखों वाला पानी चाहिए।

जो भी कुछ लुटा रहे हो तुम यहाँवो ही बस तुम्हारे साथ जाएगा,

जो छुपाके रखा है तिजोरी मेंवो तो धन न कोई काम आएगा,

सोने का ये रंग छूट जाना हैहर किसी का संग छूट जाना

हैआखिरी सफर के इंतजाम के लिएजेब भी कफन में इक लगानी चाहिए।

आदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी

चाहिएरागिनी है एक प्यार कीजिंदगी कि जिसका नाम

हैगाके गर कटे तो है सुबहरोके गर कटे तो शाम है

शब्द और ज्ञान व्यर्थ हैपूजा-पाठ ध्यान व्यर्थ

हैआँसुओं को गीतों में बदलने के लिए, लौ किसी यार से लगानी

चाहिएआदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी

चाहिएजो दु:खों में मुस्कुरा दियावो तो इक गुलाब बन

के हक में जो मिटाप्यार की किताब बन गया,

आग और अँगारा भूल जा तेग और दुधारा भूल

जादर्द को मशाल में बदलने के लिएअपनी सब जवानी खुद जलानी चाहिए।

आदमी को आदमी बनाने के लिए जिंदगी में प्यार की कहानी

चाहिएदर्द गर किसी का तेरे पास हैवो खुदा तेरे बहुत करीब

हैप्यार का जो रस नहीं है आँखों मेंकैसा हो

अमीर तू गरीब हैखाता और बही तो रे बहाना हैचैक

और सही तो रे बहाना हैसच्ची साख मंडी में कमाने के लिए दिल की कोई हुंडी भी भुनानी चाहिए।

खलील जिब्रान


खलील जिब्रान
- डॉ। रश्मिकांत व्यासवे अपने विचार जो उच्च कोटि के सुभाषित या कहावत रूप में होते थे, उन्हें कागज के टुकड़ों, थिएटर के कार्यक्रम के कागजों, सिगरेट की डिब्बियों के गत्तों तथा फटे हुए लिफाफों पर लिखकर रख देते थे। उनकी सेक्रेटरी श्रीमती बारबरा यंग को उन्हें इकट्ठी कर प्रकाशित करवाने का श्रेय जाता है। उन्हें हर बात या कुछ कहने के पूर्व एक या दो वाक्य सूत्र रूप में सूक्ति कहने की आदत थी।संसार के श्रेष्ठ चिंतक महाकवि के रूप में विश्व के हर कोने में ख्याति प्राप्त करने वाले, देश-विदेश भ्रमण करने वाले खलील जिब्रान अरबी, अंगरेजी फारसी के ज्ञाता, दार्शनिक और चित्रकार भी थे। उन्हें अपने चिंतन के कारण समकालीन पादरियों और अधिकारी वर्ग का कोपभाजन होने से जाति से बहिष्कृत करके देश निकाला तक दे दिया गया था। खलील जिब्रान 6 जनवरी 1883 को लेबनान के 'बथरी' नगर में एक संपन्ना परिवार में पैदा हुए। 12 वर्ष की आयु में ही माता-पिता के साथ बेल्जियम, फ्रांस, अमेरिका आदि देशों में भ्रमण करते हुए 1912 मेंअमेरिका के न्यूयॉर्क में स्थायी रूप से रहने लगे थे। उनमें अद्भुत कल्पना शक्ति थी। वे अपने विचारों के कारण कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के समकक्ष ही स्थापित होते थे। उनकी रचनाएं 22 से अधिक भाषाओं में देश-विदेश में तथा हिन्दी, गुजराती, मराठी, उर्दू में अनुवादित हो चुकी हैं। इनमें उर्दू तथा मराठी में सबसे अधिक अनुवाद प्राप्त होते हैं। उनके चित्रों की प्रदर्शनी भी कई देशों में लगाई गई, जिसकी सभी ने मुक्तकंठ से प्रशंसा की। वे ईसा के अनुयायी होकर भी पादरियों और अंधविश्वास के कट्टर विरोधी रहे। देश से निष्कासन के बाद भी अपनी देशभक्ति के कारण अपने देश हेतु सतत लिखते रहे। 48 वर्ष की आयु में कार दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल होकर 10 अप्रैल 1931 को उनका न्यूयॉर्क में ही देहांत हो गया। उनके निधन के बाद हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों को आते रहे। बाद में उन्हें अपनी जन्मभूमि के गिरजाघर में दफनाया गया। वे अपने विचार जो उच्च कोटि के सुभाषित या कहावत रूप में होते थे, उन्हें कागज के टुकड़ों, थिएटर के कार्यक्रम के कागजों, सिगरेट की डिब्बियों के गत्तों तथा फटे हुए लिफाफों पर लिखकर रख देते थे। उनकी सेक्रेटरी श्रीमती बारबरा यंग को उन्हें इकट्ठी कर प्रकाशित करवाने का श्रेय जाता है। उन्हें हर बात या कुछ कहने के पूर्व एक या दो वाक्य सूत्र रूप में सूक्ति कहने की आदत थी।

वे कहते थे जिन विचारों को मैंने सूक्तियों में बंद किया है, मुझे अपने कार्यों से उनको स्वतंत्र करना है। 1926 में उनकी पुस्तक जिसे वे कहावतों की पुस्तिका कहते थे, प्रकाशित हुई थी। इन कहावतों में गहराई, विशालता और समयहीनता जैसी बातों पर गंभीर चिंतन मौजूद है। उनकी कुछ श्रेष्ठतम सूक्तियां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं- * सत्य को जानना चाहिए पर उसको कहना कभी-कभी चाहिए। * दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो, जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है, बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो, जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है। * कुछ सुखों की इच्छा ही मेरे दुःखों का अंश है। * यदि तुम अपने अंदर कुछ लिखने की प्रेरणा का अनुभव करो तो तुम्हारे भीतर ये बातें होनी चाहिए- 1. ज्ञान कला का जादू, 2. शब्दों के संगीत का ज्ञान और 3. श्रोताओं को मोह लेने का जादू। * यदि तुम्हारे हाथ रुपए से भरे हुए हैं तो फिर वे परमात्मा की वंदना के लिए कैसे उठ सकते हैं। * बहुत-सी स्त्रियाँ पुरुषों के मन को मोह लेती हैं। परंतु बिरली ही स्त्रियाँ हैं जो अपने वश में रख सकती हैं। * जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते, वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते। * मित्रता सदा एक मधुर उत्तरदायित्व है, न कि स्वार्थपूर्ति का अवसर। * मंदिर के द्वार पर हम सभी भिखारी ही हैं। * यदि अतिथि नहीं होते तो सब घर कब्र बन जाते। * यदि तुम्हारे हृदय में ईर्ष्या, घृणा का ज्वालामुखी धधक रहा है, तो तुम अपने हाथों में फूलों के खिलने की आशा कैसे कर सकते हो? * यथार्थ में अच्छा वही है जो उन सब लोगों से मिलकर रहता है जो बुरे समझे जाते हैं। * इससे बड़ा और क्या अपराध हो सकता है कि दूसरों के अपराधों को जानते रहें। * यथार्थ महापुरुष वह आदमी है जो न दूसरे को अपने अधीन रखता है और न स्वयं दूसरों के अधीन होता है। * अतिशयोक्ति एक ऐसी यथार्थता है जो अपने आपे से बाहर हो गई है। * दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो। * संसार में केवल दो तत्व हैं- एक सौंदर्य और दूसरा सत्य। सौंदर्य प्रेम करने वालों के हृदय में है और सत्य किसान की भुजाओं में। * इच्छा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत। * निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है, इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी। * यदि तुम जाति, देश और व्यक्तिगत पक्षपातों से जरा ऊँचे उठ जाओ तो निःसंदेह तुम देवता के समान बन जाओगे।

कामसूत्र और योगासन

आमतौर पर यह धारणा प्रचलित है कि संभोग के अनेक आसन होते हैं। 'आसन' कहने से हमेशा योग के आसन ही माने जाते रहे हैं। जबकि संभोग के सभी आसनों का योग के आसनों से कोई संबंध नहीं। लेकिन यह भी सच है योग के आसनों के अभ्यास से संभोग के आसनों को करने में सहजता पाई जा सकती है।योग के आसन : योग के आसनों को हम पाँच भागों में बाँट सकते हैं:-(1). पहले प्रकार के वे आसन जो पशु-पक्षियों के उठने-बैठने और चलने-फिरने के ढंग के आधार पर बनाए गए हैं जैसे- वृश्चिक, भुंग, मयूर, शलभ, मत्स्य, सिंह, बक, कुक्कुट, मकर, हंस, काक आदि।(2). दूसरी तरह के आसन जो विशेष वस्तुओं के अंतर्गत आते हैं जैसे- हल, धनुष, चक्र, वज्र, शिला, नौका आदि।(3). तीसरी तरह के आसन वनस्पतियों और वृक्षों पर आधारित हैं जैसे- वृक्षासन, पद्मासन, लतासन, ताड़ासन आदि।(4). चौथी तरह के आसन विशेष अंगों को पुष्ट करने वाले माने जाते हैं-जैसे शीर्षासन, एकपादग्रीवासन, हस्तपादासन, सर्वांगासन आदि।(5). पाँचवीं तरह के वे आसन हैं जो किसी योगी के नाम पर आधारित हैं-जैसे महावीरासन, ध्रुवासन, मत्स्येंद्रासन, अर्धमत्स्येंद्रासन आदि।संभोग के आसनों का नाम : आचार्य बाभ्रव्य ने कुल सात आसन बताए हैं- 1. उत्फुल्लक, 2. विजृम्भितक, 3. इंद्राणिक, 4. संपुटक, 5. पीड़ितक, 6. वेष्टितक, 7. बाड़वक।आचार्य सुवर्णनाभ ने दस आसन बताए हैं: 1.भुग्नक, 2.जृम्भितक, 3.उत्पी‍ड़ितक, 4.अर्धपीड़ितक, 5.वेणुदारितक, 6.शूलाचितक, 7.कार्कटक, 8.पीड़ितक, 9.पद्मासन और 10. परावृत्तक।
NDआचार्य वात्स्यायन के आसन :विचित्र आसन : 1।स्थिररत, 2.अवलम्बितक, 3.धेनुक, 4.संघाटक, 5.गोयूथिक, 6.शूलाचितक, 7.जृम्भितक और 8.वेष्टितक।अन्य आसन : 1.उत्फुल्लक, 2.विजृम्भितक, 3.इंद्राणिक, 4. संपुटक, 5. पीड़ितक, 6.बाड़वक 7. भुग्नक 8.उत्पी‍ड़ितक, 9. अर्धपीड़ितक, 10.वेणुदारितक, 11. कार्कटक 12. परावृत्तक आसन 13. द्वितल और 14. व्यायत। कुल 22 आसन होते हैं। यहाँ आसनों के नाम लिखने का आशय यह कि योग के आसनों और संभोग के आसनों के संबंध में भ्रम की निष्पत्ति हो। संभोग के उक्त आसनों में पारंगत होने के लिए योगासन आपकी मदद कर सकते हैं। इसके लिए आपको शुरुआत करना चाहिए 'अंग संचालन' से अर्थात सूक्ष्म व्यायाम से। इसके बाद निम्नलिखित आसन करें
(1) पद्‍मासन : इस आसन से कूल्हों के जाइंट, माँसमेशियाँ, पेट, मूत्राशय और घुटनों में खिंचाव होता है जिससे इनमें मजबूती आती है और यह सेहतमंद बने रहते हैं। इस मजबूती के कारण उत्तेजना का संचार होता है। उत्तेजना के संचार से आनंद की दीर्घता बढ़ती है।(2) भुजंगासन : भुजंगासन आपकी छाती को चौड़ा और मजबूत बनाता है। मेरुदंड और पीठ दर्द संबंधी समस्याओं को दूर करने में फायदेमंद है। यह स्वप्नदोष को दूर करने में भी लाभदायक है। इस आसन के लगातार अभ्यास से वीर्य की दुर्बलता समाप्त होती है। (3) सर्वांगासन : यह आपके कंधे और गर्दन के हिस्से को मजबूत बनाता है। यह नपुंसकता, निराशा, यौन शक्ति और यौन अंगों के विभिन्न अन्य दोष की कमी को भी दूर करता है।(4) हलासन : यौन ऊर्जा को बढ़ाने के लिए इस आसन का इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पुरुषों और महिलाओं की यौन ग्रंथियों को मजबूत और सक्रिय बनाता है।(5) धनुरासन : यह कामेच्छा जाग्रत करने और संभोग क्रिया की अवधि बढ़ाने में सहायक है। पुरुषों के ‍वीर्य के पतलेपन को दूर करता है। लिंग और योनि को शक्ति प्रदान करता है।(6) पश्चिमोत्तनासन : सेक्स से जुड़ी समस्त समस्या को दूर करने में सहायक है। जैसे कि स्वप्नदोष, नपुंसकता और महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़े दोषों को दूर करता है।(7) भद्रासन : भद्रासन के नियमित अभ्यास से रति सुख में धैर्य और एकाग्रता की शक्ति बढ़ती है। यह आसन पुरुषों और महिलाओं के स्नायु तंत्र और रक्तवह-तन्त्र को मजबूत करता है।(8) मुद्रासन : मुद्रासन तनाव को दूर करता है। महिलाओं के मासिक धर्म से जुड़े हए विकारों को दूर करने के अलावा यह आसन रक्तस्रावरोधक भी है। मूत्राशय से जुड़ी विसंगतियों को भी दूर करता है।(9) मयुरासन : पुरुषों में वीर्य और शुक्राणुओं में वृद्धि होती है। महिलाओं के मासिक धर्म के विकारों को सही करता है। लगातार एक माह तक यह आसन करने के बाद आप पूर्ण संभोग सुख की प्राप्ति कर सकते हो।(10) कटी चक्रासन : यह कमर, पेट, कूल्हे, मेरुदंड तथा जंघाओं को सुधारता है। इससे गर्दन और कमर में लाभ मिलता है। यह आसन गर्दन को सुडौल बनाकर कमर की चर्बी घटाता है। शारीरिक थकावट तथा मानसिक तनाव दूर करता