Friday, April 16, 2010

थक जाओ गर पथरीले रास्तों पे चलते हुए

थक जाओ गर पथरीले रास्तों पे चलते हुए
कभी सोच न लेना की वहां तनहा हो तुम
मूँद कर पलकों को अपनी जो तुम देखोगे
अपने साथ ही सदा मुझ को पाओगे तुम

हर वक्त बुरा कट जात है, यकीन करना
आँखों मैं कभी तुम अश्क न भर लेना
धुंध बढ़ जाए, मुस्कराहट खोने लगे
अपनी दुआओं मैं मुझ को पाओगे तुम

इश्क नाम तो नहीं है मिलन का, दीदार का
दिल से दिल का मिल जाना है नाम-ऐ-मोहब्बत
जो याद आ जाए मेरी, न समझना की दूर हूँ
अपने सीने मैं धड़कता मुझ को पाओगे तुम

वक्त की गर्मी जो झुलसाने लगे वुजूद
मेरी चाहत की नमी को महसूस करना
जो सर्द हवां ज़माने की आने लगें पास
मेरी वफाओं की गर्मी को महसूस करना
मैं तुमसे जुदा तो नहीं हूँ मेरे हमदम
अपने साथ ही सदा मुझ को पाओगे तुम !!

बस एक झिझक यही है हाल-ऐ-दिल सुनाने में

बस एक झिझक यही है हाल-ऐ-दिल सुनाने में,
के तेरा जिक्र भी आ जाएगा इस फ़साने में !

बरस पड़ी थी जो रुख से नकाब उठाने में,
वो चांदनी है, अभी तक मेरे गरीब-खाने में !

इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थे,
जो वक़्त बीत गया मुझको आजमाने में !

ये कह के टूट गया साख-ऐ-गुल से आखरी फूल,
अब और देर है कितनी बहार आने में !

प्यार करने के लीये तो ये जिंदगी इतनी छोटी पड जाती है

प्यार करने के लीये तो ये जिंदगी इतनी छोटी पड जाती है ,
पता नहि लोग नफ़रत के लिये कैसे टाइम निकाल लेते है ,

उड़ गया रंग, खुशबु हवा हो गयी

उड़ गया रंग, खुशबु हवा हो गयी
जिन्दगी देखिये क्या से क्या हो गयी

दिल से रुखसत हुई जब ख़ुशी यूँ लगा
बाप के घर से बेटी बिदा हो गयी

दूर तक तीरगी, तीरगी, तीरगी
जिन्दगी एक अंधी गुफा हो गयी

उसकी आँखों ने छलकाए आंसू मेरे
उसकी सूरत मेरा आईना हो गयी

रास आयी नही मुझको आसानियाँ
मेरी मुस्किल मेरा हौंसला हो गयी

एक शय नाम जिसका था इंसानियत
देखते-देखते लापता हो गयी

काफिले का अब भटकना ही मुकद्दर हो गया

काफिले का अब भटकना ही मुकद्दर हो गया
रास्तों से जो नहीं वाकिफ वो रहबर हो गया

कल जमीं पर था अब उसका आसमां घर हो गया
देखते ही देखते कतरा समंदर हो गया

पत्थरों को छूके जिन्दा करने वाला आदमी
जिन्दगी को जीते-जीते खुद ही पत्थर हो गया

बात करता है मेरी आँखों में आँखें डाल कर
मेरा बेटा कद में अब मेरे बराबर हो गया

जिन्दगी तो एक मुसलसल जंग है इस जंग में
कोई पोरस हो गया कोई सिकंदर हो गया

प्यार से यारों ने भेजा था जो गुलदस्ता मुझे
मेरे छूते ही न जाने कैसे खंजर हो गया

अब न कोई चौंकता है और न रुकता है कोई
शहर में अब हादसा इक आम मंजर हो गया

पानी बदलो जरा हवा बदलो

पानी बदलो जरा हवा बदलो
जिंदगानी की ये फिजा बदलो

कह रही है ये दूर से मंजिल
काफिले वालो रहनुमा बदलो

तुम को जीना है इस जहाँ में अगर
अपने जीने का फलसफा बदलो

आंधियाँ तो बदलने वाली नहीं
तुम ही बुझता हुआ दिया बदलो

मुस्कराहट मिला के थोड़ी सी
अपने अश्कों का जायका बदलो

दाग अपने न जब नजर आये
जल्द से जल्द आईना बदलो

सारी दुनिया बदल गयी कितनी
तुम भी यार अब जरा बदलो