Friday, April 16, 2010

बस एक झिझक यही है हाल-ऐ-दिल सुनाने में

बस एक झिझक यही है हाल-ऐ-दिल सुनाने में,
के तेरा जिक्र भी आ जाएगा इस फ़साने में !

बरस पड़ी थी जो रुख से नकाब उठाने में,
वो चांदनी है, अभी तक मेरे गरीब-खाने में !

इसी में इश्क की किस्मत बदल भी सकती थे,
जो वक़्त बीत गया मुझको आजमाने में !

ये कह के टूट गया साख-ऐ-गुल से आखरी फूल,
अब और देर है कितनी बहार आने में !

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